Monday, March 16, 2009

श्री हनुमान चालीसा

दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥बुध्दिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार ।बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥चौपाईजय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपिस तिहुँ लोक उजागर ॥राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि-पुत्र पवन सुत नामा ॥महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ॥हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै कांधे मूँज जनेऊ साजै ॥संकर सुवन केसरीनंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ॥बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लषन सीता मन बसिया ॥सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचंद्र के काज सँवारे ॥लाय सजीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥जुग सहस्त्र जोजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥भूत पिसाच निकट नहिँ आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥संकट तें हनुमान छुडावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥और मनोरथ जो कोइ लावै । सोइ अमित जीवन फल पावै ॥चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥साधु संत के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥अंत काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ॥और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेंइ सर्ब सुख करई ॥संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥जो सत बर पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ॥जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥दोहापवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।राम लषन सीता सहित,हृदय बसहु सुर भूप ॥
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