आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥ आरती……
जाके बल से गिरिवर काँपै। रोग-दोष जाके निकट न झाँपै ॥1॥
अंजनी पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई ॥2॥
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुधि लाए ॥3॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई ॥4॥
लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज सँवारे ॥5॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि सजीवन प्रान उबारे ॥6॥
पैठि पाताल तोरि जम-कारे। अहिरावन की भुजा उखारे ॥7॥
बाएं भुजा असुर दल मारे। दहिने भुजा संतजन तारे ॥8॥
सुर नर मुनि आरती उतारें। जै जै जै हनुमान उचारें ॥9॥
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरति करत अंजना माई ॥10॥
जो हनुमानजी की आरति गावै। बसि बैकुण्ठ परम पद पावै ॥11॥***
Monday, March 16, 2009
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